कहिनी – ऊलांडबाटी खेले के जुगाड़

जहां टूरा हर राजनीति म पांव धरही तहां बइठे के, सूते के, ऊलांडबाटी खेले के, सबके जुगाड़ जम जाही। दसवीं पढ़े हे कहिके कोन्हो ला झन बताबे। तहां बिधान सभा अऊ लोकसभा के रस्ता घलो खुल जाही।
मोर गुड्डू हर दसमी किलास मा दू बछर फैल का हो गीस, ओकर अनदेखनहा गुरूजी मन ओला डेनिया के इस्कूल ले निकाल दिन। में केहेंव-‘कस गुरूजी हो! अरे लइका हर अपन नेंव मजबूत करना चाहत हे त तुमन काबर ओकर संकल्प के बध करत हव? लइका हर एक किलास मा जतके जादा गियान पाही ओतके ओकर दिमाग हर चोक्खिल होही। टायर-टीव मा बने हवा नई भरहू त सयकिल हर बने मंजा के दऊंड़ही कइसे महराज?’
एक झिक डेढ़ हुंसियार गुरूजी हर बीचे मा लप्प ले मुहुं मारत कथे- ”जादाच हवा भर देबे त चक्का पंचर हो जाथे गऊंटिया, भस्ट हो जाथे। तोर टीव हर तो वइसने हे जुन्नागेहे।”
मैं हर ओकर तरक ला सुन के हार नई मानेंव अऊ पेलाही लेत पेलेंव- ”अरे गुरूजी! आमा हर जतके पाकथे ओतके मिठाथे गुरूजी।”
गुरूजी कथें- ”जादा पाके आमा मा कीरा घलो पर जाथे जी।” में केहेंव- ”त एक बात ला तुमन मोला फोर के बता दव गुरूजी आज, के जब जादा पाके आमा मा कीरा पर जाथे, तब अऊंसाय मुहुं वाले, बस्साय मुंहुं वाले, फुसनाय मुहुं वाले, गोबर्रा कीरा कस मुहुं वाले, जुन्नाय नेता मन मा काबर कीरा नई परय? महिना के महिना डायलेसिस मा सूतहीं, भील चेयर मा बइठे-बइठे घूमहीं, तभो ले ऊंकर नेतागिरी हर अऊ ऊदाली मारथे, अऊ गेदराय लगथे।
ओमन अऊ छान्हीं मा होरा भूंजे लगथें। एक घंव नहीं, भलुक दू-दी घंव के चुनई मा, जनता ओ मन ला दूध चोट्टी बिलई बरोबर खेदारही, त उल्टा पार्टी मा बड़का-बड़का पद मिल जाथे। उन ला राजसभा म बइठार के मंतरी बना दिए जाथे। अऊ तुमन मोर लइका ला एक किलास मा सिरीफ दू साल नई बईठार सकव गुरूजी?”
”त जाना दाऊ” गुरूजी कथे तोरो लइका ला नेता बना दे। पढ़ाय बर काबर हालिगडांग होवत हस? मैं केहेंव- ”मोर टूरा हर थोरिक जादा पढ़ डारे हे गुरूजी! नहिं तो तुंहर मुहुं ला काबर देखतेंव, नेताच बना के देखातेंव। जब वो हर चौंथी किलास मा फैल होईस तभे मोला ये बूता ला कर डारना रहीस हे।” वो कथे-”अभी घलो जादा कुछु नई बिगडे हे। ओकर भाग हर ओला नेतागिरी कोती तीरत हे। तभे तो ओहर घेरी-बेरी फैल होवत हे। परमात्मा के इसारा ल समझ भोकवा। अरे टूरा हर आगू एमए, बीए करी डारही, त कायेच कर लिही? अंगठा छाप नेता के गोडे तरी तो घुंडलही। कोनो कुटहा नेता के फटहा एंड़ी मा भेसलीन लगात जिनगी पहाही। अभी कुछु नई बिगडे हे। ठौका पारसद के चुनई आय हे, ठाढ़ कर दे। गंगा अस्नान हो जाही। जीत जाही त बड़े-बडे डिगरी वाले मास्टर, इंजीनियर, साहेब मन ला आंखी गुडेरही, घुड़की लगाही। अऊ वो जम्मो मन, सुकुरदुम होके मुड़ी नवांय कलेचुप ठाढे रहीं। सोंच गऊंटिया सोंच। तोर बेटा के जब अतका रूआब रही, तब तोर कतका रही। पारसद-पिता होबे तैं। पौडर, इस्नो वाले चमकुल मेडम मन तुंहर करा मिले बर आहीं।
जहां टूरा हर राजनीति म पांव धरही तहां बइठे के, सूते के, ऊलांडबाटी खेले के, सबके जुगाड़ जम जाही। दसमीं पढ़े हे कहिके कोन्हो ला झन बताबे। तहां बिधान सभा अऊ लोकसभा के रस्ता घलो खुल जाही।”
मैं केहेंव, त ओ हर बिधान सभा अऊ लोक सभा के जम्मो बूता ला कर डारही गुरूजी? वो कथे हत् जोजवा! बूता ला कर डारही कथस। ऊंहा कामेच का रहिथे? जोर-जोर से नरेटी ला फार के बोमियाव, पनही चलाव, माइक टोरो, ककरो कालर ला धर लो। कोनों ला दू चार मुटका गुदगेल दो।
”वा, ये सब काम ला तो मोर टूरा हर इस्कूले मा कर डारे हे। तुमन तो खुदे जानत हो, कतका ओस्ताज आय ओ हर ये सब मा।”
”जानत हो, जानत हों। ओंकर सुरता झन करा। मोला घुरघुरी धरे लागथे। सुन जब तोर बेटा लोक सभा म हबर जाही त ओला सूटकेस मिलही। मैं केहेंव भइगे सूटेकेस मिलही गुरूदेव? सूटकेस ला काय करिहौं? हां, मोर परानी के डोलची हर टूट गे हे। डोलची मिलही का?” गुरूजी कथे-”हत्त भोकवा! ये सूटकेस हर वो सूटकेस नो हय। ये हर सिब्बू गुरूजी वाले सूटकेस ये। वारा-न्यारा कर देथे। भाग खुल जाथे एकर मिले ले।”
”अइसे?” में केहेंव ठौका अक्कल देव गुरूजी! मन गदगदागे, वाह! मैं फोकटे-फोकट मा तुंहला आनी बानी के ठोंसरा सुना पारेंव। मैं अब्भी जावत हो, अऊ दसमीं के जघा मा पारसद के फारम, टूरा ला अभी भरात हों। धन्नबाद गुरूजी। जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़।
 ”वाह! आधा नेता तो तहीं बन गे। जाओ दाऊजी। शुभस्य शीघ्रम्! कल्याण हो। देस का, आपका और हमारा भी। चरैवेति।”
के.के. चौबे
गयाबाई स्कूल के
बाजू वाली गली
गया नगर, दुर्ग

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